मधेपुरा में 1950 में गिरा था पहला उल्कापिंड

रविशंकर उपाध्याय®पटना.
मधुबनी में 22 जुलाई को गिरे उल्कापिंड के बाद यह जानना दिलचस्प है कि बिहार में पहला उल्कापिंड 1950 को गिरा था. मधेपुरा शहर में एक गोदाम पर तेज गर्जना के साथ वह उल्कापिंड दोहरी चादर वाले छत को फाड़ता हुआ धरती पर गिरा था. बिहार के अलग अलग हिस्से  में गिरे तीन उल्का पिंड पटना संग्रहालय में सुरक्षित हैं. काशी प्रसाद जायसवाल शोध संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ चितरंजन प्रसाद सिन्हा कहते हैं कि पहला उल्का पिंड 23 मई 1950 को 3 बजे दिन में मधेपुरा शहर में एक गोदाम पर तेज गर्जना के साथ दोहरी चादरे के छत को फाड़ता हुआ धरती पर गिरा था, जिसे जांच परख के बाद पटना संग्रहालय को सौंप दिया गया था.
1964 में सारण और मुजफ्फरपुर में गिरा था दूसरा उल्कापिंड
दूसरी बार 11 अप्रैल 1964 को 5 बजे एक ही समय में दो स्थानों पर उल्का पिंड गिरे थे. पहला गंडक नदी के पूरब मुजफ्फरपुर जिले के पारु थाना में रेवाघाट के नजदीक एक खेत में और दूसरा गंडक के पश्चिम, सारण जिले के परसा थाना में एक गांव के पास खेत में उल्का पिंड गिरा था. दोनों उल्का पिंडों को संयुक्त रूप से मुजफ्फरपुर उल्का पिंड (मुजफ्फरपुर मिटियोराइट) के नाम से जाना जाता है. इन पिंडों को भी जांच के बाद पटना संग्रहालय को सौंप दिया गया था.
मुजफ्फरपुर का उल्कापिंड है बेहद खास 
वे कहते हैं कि मुजफ्फरपुर उल्का पिंड अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है. यह संसार में “इंटरप्टेड स्ट्रक्चर” के साथ अकेला  ‘निकल-बहुल लौह उल्का पिंड’ है. यह अपनी तरह का भारत का पहला तथा विश्व में 37 वां इस तरह का उल्का पिंड है. अमेरिका के स्मिथसोनियन इंस्टिट्यूट के डॉ हैंडरसन के अनुसार ‘मुजफ्फरपुर उल्का पिंड’ सौर्य-मंडल से आया है, जिसका एक सदस्य पृथ्वी भी है. यूएसए एटॉमिक कमीशन के डॉ जॉन एम पोमेरॉय इस उल्का पिंड के उद्भव का एक थ्योरी प्रस्तावित करते हुए बताते हैं कि यह उल्का पिंड कभी एक प्राचीन ग्रह का भाग रहा होगा जो सूर्य से करीब 250 मिलियन मील दूर मंगल और बृहस्पति ग्रहों के बीच सूर्य की परिक्रमा करता था. 

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